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इसलिए जीवन में गुरु का होना क्यों जरुरी है
भारतीय सनातन संस्कृति में गुरु को सर्वोपरि माना है। वास्तव में शिक्षक दिवस का दिन गुरु के रूप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का। माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक सद्गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है, जिससे व्यक्ति अपने सद्कर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है। यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया।
भारतीय सनातन संस्कृति में गुरु को सर्वोपरि माना है। वास्तव में शिक्षक दिवस का दिन गुरु के रूप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का। माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक सद्गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है, जिससे व्यक्ति अपने सद्कर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है। यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया।
इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करता है। जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है। सार यह है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है। जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है। ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है इसलिए जीवन में गुरु का होना जरुरी है।
गुुरु के सामने यह काम नहीं करना चाहिए-
1- शिष्य को गुरु के आसन एवं शैय्या का प्रयोग स्वयं कभी नही करना चाहिए।
2- गुरु के सामने दीवार या अन्य किसी सहारे से टिक कर न बैठें, उनके सामने पांव फैला कर ना बैठें।
3- गुरु के सामने अश्लील शब्दों का प्रयोग नही करें।
4- गुरु के समान आसन पर न बैठें, जिस स्थान पर गुरु विराजमान हो आप उससे नीचे की स्थिति में बैठें।
1- शिष्य को गुरु के आसन एवं शैय्या का प्रयोग स्वयं कभी नही करना चाहिए।
2- गुरु के सामने दीवार या अन्य किसी सहारे से टिक कर न बैठें, उनके सामने पांव फैला कर ना बैठें।
3- गुरु के सामने अश्लील शब्दों का प्रयोग नही करें।
4- गुरु के समान आसन पर न बैठें, जिस स्थान पर गुरु विराजमान हो आप उससे नीचे की स्थिति में बैठें।
5- जब भी गुरु से मिलने जाएं तो खाली हाथ न जाएं, कुछ न कुछ उपहार अवश्य साथ ले जाएं।
आप अपना सुझाव जरूर दे। आपका राधाकृष्ण कुमार
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